झारखंड की घाटशिला विधानसभा सीट पर 11 नवंबर को उपचुनाव होना है, और इस बार मुकाबला बेहद रोचक बन गया है। यहां दो बड़े सियासी घराने आमने-सामने हैं — एक तरफ हैं पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन, तो दूसरी तरफ दिवंगत मंत्री रामदास सोरेन के पुत्र सोमेश सोरेन।
इस तरह झारखंड की राजनीति में एक बार फिर देखने को मिल रही है ‘सोरेन बनाम सोरेन’ की टक्कर।
झामुमो की प्रतिष्ठा दांव पर
रामदास सोरेन के निधन से खाली हुई इस सीट को झामुमो किसी भी कीमत पर अपने पास रखना चाहता है। पार्टी ने उनके बेटे सोमेश सोरेन पर भरोसा जताया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद छठ पर्व के बाद मैदान में उतरेंगे, जबकि उनकी पत्नी कल्पना सोरेन महिला मतदाताओं के बीच प्रचार संभालेंगी।
महिला मोर्चा और संगठन की टीमें गांव-गांव जाकर जनसंपर्क अभियान चला रही हैं।
भाजपा का ‘कोल्हान मिशन’
वहीं भाजपा इस उपचुनाव को हेमंत सरकार के खिलाफ जनमत संग्रह के रूप में देख रही है। पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और अर्जुन मुंडा जैसे दिग्गज नेताओं को प्रचार में उतारा है। भाजपा उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन को संथाल समाज के साथ-साथ शहरी और गैर-आदिवासी वोटों पर भी भरोसा है।
पार्टी का नारा है — “अबकी बार, बदलाव की बारी।”
क्यों खास है घाटशिला सीट
कोल्हान क्षेत्र की यह सीट न सिर्फ स्थानीय जनभावनाओं का प्रतीक है, बल्कि झारखंड की भविष्य की सियासत की दिशा भी तय कर सकती है।
यहां का चुनाव यह बताएगा कि जनता आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले किसके पक्ष में मन बना रही है — हेमंत सरकार के विकास और परंपरा के मॉडल पर या भाजपा के बदलाव और स्थिरता के वादे पर।
नतीजे तय करेंगे कि कोल्हान में ‘सोरेन परिवार’ की पकड़ बरकरार रहती है या भाजपा अपनी खोई जमीन वापस हासिल करती है।

