रांची / टुंडी : झारखंड के दिशोम गुरु शिबू सोरेन के संघर्ष और विचारों से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा साल 1976 का है। यह वही दौर था जब वे राज्य के आदिवासियों की हथियाई गई ज़मीन वापस दिलाने के आंदोलन में सक्रिय थे। टुंडी इलाका तब उनके प्रभाव क्षेत्र में था, जहां वे अपने तरीके से “जन सरकार” चलाते थे।
उन दिनों उनके काम की चर्चा पूरे देश में हो रही थी। इसी क्रम में प्रसिद्ध पत्रिका ‘दिनमान’ के संपादक जवाहरलाल कौल उनसे मिलने टुंडी पहुंचे। दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई।
बातचीत के दौरान कौल ने जिज्ञासावश पूछा —
“आप मार्क्सवादी हो क्या?”
इस पर शिबू सोरेन मुस्कुराए और बोले —
“नहीं, मार्क्स को नहीं पढ़ा है। जो भी थोड़ा पढ़ा है, वह गांधी और जयप्रकाश को पढ़ा है। उन्हीं से प्रेरणा मिलती है।”
यह जवाब उनके गांधीवादी सोच और जनसेवा के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
गांधी से मिली प्रेरणा
शिबू सोरेन पर महात्मा गांधी का गहरा प्रभाव उनके पिता सोबरन सोरेन के कारण पड़ा। वे एक शिक्षक और पक्के गांधीवादी थे, जो गांव-गांव जाकर शिक्षा का प्रचार करते थे और महाजनी प्रथा का खुलकर विरोध करते थे।
इसी विरोध के चलते महाजनों ने उनकी हत्या कर दी। उस समय शिबू सोरेन की उम्र मात्र 13–14 वर्ष थी। पिता की मौत ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी।
उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे महाजनी शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे और आदिवासियों की जमीन वापस दिलाने का संकल्प पूरा करेंगे।
यही से शुरू हुआ उनका आंदोलन —
“धान काटो आंदोलन” और “जमीन वापस आंदोलन”, जिसने झारखंड की राजनीति और समाज दोनों को झकझोर कर रख दिया।

