Surya Hansda encounter: झारखंड के गोड्डा जिले में समाजसेवी, राजनेता और कई आपराधिक मामलों में वांछित माने जाने वाले सूर्यनारायण हांसदा उर्फ सूर्या हांसदा के कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद विवाद और विरोध की राजनीति तेज हो गई है। एक ओर पुलिस का दावा है कि सूर्या की मौत मुठभेड़ में हुई, वहीं विपक्षी दलों और आदिवासी संगठनों ने इसे “साजिशन हत्या” करार दिया है और निष्पक्ष जांच की मांग उठाई है।
सबसे पहले झारखंड भाजपा ने सूर्या हांसदा एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए या फिर किसी सिटिंग जज की अध्यक्षता में जांच होनी चाहिए। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार इस पूरे प्रकरण को छिपाने की कोशिश कर रही है और मुठभेड़ की आड़ में कई तथ्यों को दबाया गया है। भाजपा के बाद झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) ने भी सीबीआई जांच की मांग दोहराई।
अब आदिवासी संगठन भी इस मुद्दे पर खुलकर सामने आ गए हैं। जय आदिवासी केंद्रीय परिषद की अध्यक्ष निरंजना टोप्पो ने बुधवार को घोषणा की कि राजधानी रांची में शाम को कैंडल मार्च निकाला जाएगा। टोप्पो ने आरोप लगाया कि सूर्या हांसदा की पुलिस हिरासत में हत्या की गई है। उन्होंने कहा, “सूर्या हांसदा ने कई राजनीतिक दलों के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा था। वह एक बड़े आदिवासी नेता थे। उनकी मौत किसी मुठभेड़ में नहीं, बल्कि सोची-समझी साजिश के तहत करवाई गई हत्या है।”
निरंजना टोप्पो के मुताबिक, 20 अगस्त 2025 को रांची में आदिवासी संगठनों की ओर से कैंडल मार्च निकाला जाएगा और सरकार से न्याय की मांग की जाएगी। वहीं केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने भी कहा कि 23 अगस्त को आदिवासी संगठन राजभवन तक मार्च निकालेंगे और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपेंगे।
गौरतलब है कि सूर्या हांसदा को पुलिस ने 10 अगस्त 2025 को देवघर जिले के नवाडीह गांव से गिरफ्तार किया था। पुलिस का कहना है कि पूछताछ के बाद हथियार बरामदगी के लिए उसे राहदबदिया पहाड़ियों पर ले जाया गया। इस दौरान उसने कथित तौर पर पुलिसकर्मियों से हथियार छीनने की कोशिश की और भागने लगा। पुलिस का दावा है कि सूर्या और उसके साथियों ने गोलीबारी भी की, जिसके जवाब में पुलिस ने कार्रवाई की और इसी मुठभेड़ में उसकी मौत हो गई।
हालांकि आदिवासी संगठन पुलिस की इस कहानी पर भरोसा नहीं जता रहे हैं। उनका कहना है कि सूर्या पहले से ही पुलिस हिरासत में था और ऐसे में मुठभेड़ की कहानी गढ़ी गई है। संगठन इसे आदिवासी नेताओं की आवाज दबाने की साजिश बता रहे हैं।
संताल परगना इलाके में सूर्या हांसदा की अच्छी पकड़ मानी जाती थी। वह समय-समय पर कई राजनीतिक दलों से जुड़ते रहे और विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके थे। उनकी छवि एक ओर समाजसेवी और आदिवासी नेता की रही, तो दूसरी ओर उन पर कई आपराधिक मामले भी दर्ज थे।
अब सूर्या हांसदा की मौत ने झारखंड की सियासत को गरमा दिया है। एक तरफ भाजपा और अन्य विपक्षी दल सरकार पर हमला बोल रहे हैं, तो दूसरी ओर आदिवासी संगठनों ने सड़क पर उतरने का ऐलान कर दिया है। आने वाले दिनों में यह मामला और तूल पकड़ सकता है।
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